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जब योजनाये ही नहीं बनी हैं तो 10000 करोड़ किसलिए? ओवरस्मार्टनेस से चले अंधेर नगरी

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ओवर स्मार्ट (अंधेर) नगरी :
योजनाएं ही नहीं बनी तो 10000 करोड़ किसलिए ?

बहुत से लोग सरकार की 100 स्मार्ट सिटी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना की विभिन्न पूर्वाग्रहों के कारण आलोचना कर रहे है I आलोचक इसे शहरीकरण के पक्ष में व ग्राम संस्कृति के विरोध में मान रहे हैं I वे इस तथ्य को झुठलाना चाहते हैं कि शहरीकरण विकास की प्रक्रिया का स्वाभाविक अंग हैं और दिनोदिन अधिक से अधिक लोग शहरों में बसना चाहेंगे ही I वे अव्यवस्थित बस्तियॉ बनाकर बसे, इससे बेहतर है कि उन्हें स्मार्टनेस के साथ शहर दिये जाये I कई लोग इसलिए भी आलोचना कर रहे है क्योंकि उन्हें इस योजना के व्यापक उद्देश्य और लाभ नहीं मालूम है I फ़िलहाल तो सरकार के कुछ कदमों से ऐसा लग रहा है कि उसे स्वयं ही इन व्यापक उद्देश्यों का ख्याल नहीं रहा है I इसलिए बेहतर है कि सरकार में मौजूद लोग भी यहाँ लिखित बातों को अच्छी तरह समझ ले I ये उल्लेखनीय उद्देश्य है: 1) ये आधुनिक संसाधनो से युक्त और सुप्रबन्धित स्मार्ट शहर देश के विकास में ‘ग्रोथ इंजिन्स’ का काम करेंगें तथा देशी- विदेशी पूंजी निवेश को आकर्षित करेंगें I 2) ये शहर जीवन की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ़ लाइफ) के सन्दर्भ में देश के अन्य शहरों के लिये जीवंत उदाहरण या मॉडल की तरह होंगे I 3) ये शहर देश के विभिन्न भागों में स्थित होने से एक देशव्यापी नेटवर्क बनाएंगे तथा उसमे संसाधनो व सेवाओं के विस्तार के मुख्य केन्द्रों की भूमिका निभाएंगे I
उपरोक्त उद्द्देश्यो या प्रकांतर से संभावित लाभों के आलावा भी कई उद्द्देश्य इस योजना के बताये जा सकते है I परन्तु यहाँ इनका उल्लेख स्मार्ट सिटीज कंसेप्ट की वकालत करने के लिये नहीं किया गया है, बल्कि यह दर्शाने के लिए किया गया है कि सरकार किस प्रकार की गलतियां करके इन वाकई महत्वपूर्ण उद्देश्यों को ही भुला रही है I सितम्बर 2014 में जब सरकार ने पहली बार इस योजना का आधारभूत दस्तावेज ‘कंसेप्ट पेपर’ जारी किया था, तभी से सरकार की गलतियां शुरू हो जाती है I दिसंबर तक इस दस्तावेज में मामूली सुधार होते रहे, किन्तु जो असल बड़ी गलतियां थी वे अभी तक भी बनी हुई है I लेखक ने अक्टूबर में ही प्रधानमंत्री और शहरी विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर वे गलतियां बताते हुए 11 समाधानकारी सुझाव दिए थे I लेकिन उन पर तो किसी ने ध्यान नहीं दिया बल्कि उसके बाद तो दो और ऐसी बड़ी गलतियाँ की है कि अब यहाँ कांसेप्ट पेपर की गलतियों को तो छोड़कर उन दो बड़ी गड़बड़ियों की बात कर लेना ही जरुरी हो गया है I
कंसेप्ट पेपर में तो सरकार ने 5 आधार तय करके 100 शहरों के चयन की एक पूर्ण योजना पेश कर दी थी, किन्तु जनवरी 2015 में अचानक सरकार ने एक अलग ही शिगूफा छोड़ दिया कि स्मार्ट बनने वाले शहरों का चयन एक स्पर्धा के द्वारा किया जायेगा I इसके लिए जो दस कमांडमेंट्स घोषित किये गए उन्हें समझने पर मालूम हुआ कि यह तथाकथित स्पर्द्धा तो शहरों के बीच है ही नहीं, बल्कि उनमे पदस्थ अफसरों के बीच है I यह तो ऐसी ही बात हुई कि जैसे किसी आकर्षक कोर्स में प्रवेश के लिये विद्यार्थियों का चयन उनकी अभिक्षमता के आधार पर नहीं बल्कि उनके पलकों के ज्ञान व कार्यक्षमता की परीक्षा लेकर किया जाये I चिंता की बात केवल यह नहीं है कि इससे गलत चयन होगा, असली चिंता की बात तो यह है कि ‘क्या सरकार ने योजना के सर्वप्रमुख उद्देश्यों को ही दरकिनार कर दिया है?’ क्योंकि यदि उसे यह ध्यान होता कि हमें उन शहरों को चुनना है जो देश के संतुलित विकास में अधिक अच्छे ग्रोथ इंजिन्स व नेटवर्क के केंद्र बन सकें, तो वह कतई इस अच्छे विचार को स्पर्धा के नाम पर गलत दिशा में नहीं मोड़ती I इस तरह की असंगत स्पर्धा से स्मार्ट अफसरों की पहचान तो हो सकती है, प्राथमिकतानुसार स्मार्ट बनाने योग्य शहरों की पहचान नहीं हो सकती है I ऐसे शहरों का चयन तो जनगणना के आंकडो, आर्थिक व भौगोलिक अध्ययनों के आधार पर कम समय, कम खर्च में अधिक आसानी से हो जाता I
सरकार ने इस स्पर्धा के लिये जो 10 प्रश्नपत्र बताये हैं, वे नगरपालिकाओं के अफसरों के लिये कठिन चुनौतियों की तरह है, फिर उन्हें कमांडमेंट्स जैसा डरावना व गलत नाम दिया गया है I ऊपर से इसके लिये बजट व अन्य साधन-सहायता भी नहीं दिए है I ऐसे में बहुत ही अधिक असमानताओं वाले हमारे शहरों के प्रशाशको की बीच यह विचित्र स्पर्धा कैसी होगी? और उसके क्या परिणाम होंगे? इसकी कल्पना कुछ अच्छी नहीं है I इस तरह की असंगत स्पर्धा के झमेले में उलझा कर इस योजना को अधिकांश शहरों के लिये तो विलम्बित कर दिया गया है I
दूसरी ओर वित्त सम्बन्धी घोषणाएं करने में सरकार बड़ी तेजी या कहें कि हड़बड़ी दिखा रही है I फिलहाल जबकि शहरों का चयन भी नहीं हुआ है और 10 कमांडमेंट्स के नाम पर संभावित शहरों को असल में योजनाये बनाने में जरुरी प्राथमिक स्तर के काम दिए है, तब इस स्टेज में योजना के एक ही नहीं बल्कि पुरे पांच सालों के बजट की घोषणाएं कैसे और क्यों की जा रही है ? मीडिया में, कई विशेषज्ञों द्वारा कहा जा रहा है कि यह घोषित राशि बहुत कम है I परन्तु सोचने वाली बात तो यह है कि फ़िलहाल तो योजनाये और एस्टिमेट्स बनाने का समय है, तो अभी इतनी धनराशि की भी जरुरत कहाँ है? ध्यान देने वाली बात यह भी है की सरकार ने ऐसी ही हड़बड़ी दिखाते हुए 2014 के बजट में ही 7060 करोड़ की राशि आवंटित कर दी थी जिसका अभी तक तो एक रूपया भी खर्च हुआ नहीं दिख रहा है I तो फिर यह हर वर्ष 10000 करोड़ की राशि निर्धारित करने के पीछे क्या सोच है? कोई ठोस आधार, कोई गणना की गई है क्या ? किसी भी योजना को बनाये बिना इस 10000 करोड़ का क्या किया जायेगा?
सरकार का यह तर्क हो सकता है कि धनराशि की घोषणा करके वह इस योजना के प्रति अपना संकल्प और पांच साल में ही बहुत कुछ कर डालने की इच्छा दिखाना चाहती है I क्या इस तरह की दृढ़ता दिखाने के लिए व्यवस्थित प्रक्रिया के विरुद्ध कार्य करना जरूरी है? यदि सरकार कदम-दर-कदम सही कार्य करती और सबसे पहले देश के भावी ग्रोथ इंजिन्स को चुनने के लिये आर्थिक विशेषज्ञों की एक 5 या 7 सदस्यीय समिति गठित करती, जो विभिन्न राज्यों के साथ सलाह करके एक माह में कम-से-कम 80 शहरों का सही चयन कर देती I इसके बाद इन सभी चयनित शहरों में एक साथ योजना बनाने की एक वर्षीय प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी जाती I प्रत्येक शहर की विशिष्ट योजना तैयार करने के लिये उन्हें पर्याप्त बजट और विशेषज्ञ सेवाएं उपलब्ध करवाई जाती I योजनाएं बनने के बाद ही तो यह तय हो सकता है कि किस शहर को स्मार्ट बनाने के लिये कितनी राशि की आवश्यकता है? और उसके बाद ही तो यह तय करना उचित होगा कि अगले वित्तीय वर्ष 2016-17 में कितने शहरों को कितनी धनराशि किस प्रकार से उपलब्ध करवाई जा सकती है?

जबकि एक भी शहर की उदाहरण की तरह की भी योजना नहीं बनी है, तो फिर 100 शहरों के लिए 100-100 करोड़ के अफ़लातूनी फार्मूले से राशि घोषित क्यों की गई है? यह कैसे तय कर लिया गया कि सरकार पहले साल तो बीस शहरों को स्मार्ट बनाना शुरू करेगी और अगले दो सालो तक वह हर साल चालीस-चालीस नए शहरों को स्मार्ट बनाने का काम शुरू कर लेगी, जबकि शहर-चयन को तो स्पर्धा के नाम पर उलझा दिया गया है? एक साथ अधिक शहरों का चयन मुश्किल लग रहा था तो पहले 20 – 30 निर्विवाद रूप से चुने जा सकने वाले नाम ही तय कर लिए होते I फिर केवल उतने ही शहरों की अलग-अलग योजना बनाने का काम शुरू कर लेते I कन्सेप्ट पेपर में योजना बनाने की प्रकिया का उल्लेख नहीं है, इतना भी स्पष्ट नही है की योजना टॉप-डाउन अप्रोच से बनेगी या बॉटम -अप अप्रोच से? यह तो अब तक तय हो ही जाना चाहिये I ऐसे कई काम जो पहले करना चाहिये वे करने के बजाय सरकार ने राशि घोषित करने की जल्दी क्यों की? ऐसे कई सवाल है जो सरकार से संसद में ही नहीं, हर मंच से पूछे जाना चाहिये I

हरिप्रकाश ‘विसंत’

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