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स्मार्ट सिटीजः कन्सेप्ट पेपर की खामियां और वांछनीय सुधार

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देश में 100 स्मार्ट सिटीज विकसित करना नई सरकार की एक बहुत महत्वाकांक्षी योजना है। इस योजना के बारे में सरकार की सोच को सही -सही उनके द्वारा जारी कन्सेप्ट पेपर के माध्यम से समझा जा सकता है। अभी तक स्मार्ट सिटीज सम्बंधी जो भी सामग्री प्रकाशित हुई या चर्चाएॅ हुई उन सब में या तो देश विदेश की स्मार्ट सिटीज सम्बंधी जानकारीयाॅ दी गई या वे ही अपेक्षाएॅ व्यक्त की गई, जो कि सरकार के कन्सेप्ट पेपर में भी किसी न किसी रूप में शामिल है। कन्सेप्ट पेपर का बारिकी से अध्ययन करके उसकी खामियों को पहचान कर उन्हें सुधारने या बेहतर बनाने के लिये उनसे हटकर विचारे देने की कोशिश बहुत कम ही हुई है। जबकि इस समय ऐसी ही कोशिश की सर्वाधिक उपयोगिता है, ताकि स्मार्ट सिटीज की वृहत् व दीर्घकालीन योजना की नींव डालने की स्टेज पर उन्हें दुरूस्त किया जा सकें। प्रस्तुत आलेख में ऐसी ही एक कोशिश की गई है तथा कन्सेप्ट पेपर की कुछ गम्भीर त्रुटियों की चर्चा करते हुए रचनात्मक सुझाव दिये गये है।

1. इस पेपर की सबसे बड़ी गलती तो  यह है कि, ‘स्मार्ट सिटी‘ के लिये शहरों के चयन का सबसे  प्रमुख आधार शहरों  की सन् 2011 की जनगणना मे पाई गई जनसंख्या को बनाया गया है। यदि हम गंभीरता से विचार करें तो पायेंगे कि इस जनसंख्या के स्थान पर ‘‘जनसंख्या वृद्वि की दर‘‘ को आधार बनााया जाये तो वह इससे बहुत बेहतर आधार है। चूँकि, जब कुछ शहरों की आबादी सामान्य जनसंख्या वृद्धि दर की तुलना मे अधिक तेजी से बढ़ रही है तो उसका कारण यही है कि वे शहर, रोजगार, षिक्षा तथा उन्नति के अवसरों की दृष्टि से लोगों केा अधिक आकर्षित कर रहे है। इसलिये उनकी ओर छेाटे कस्बों तथा ग्रामीण क्षेत्रों से लोग अधिक संख्या में पलायन कर रहे है। इसलिये उनकी जनसंख्या मे अधिक तेज वृद्धि, उनके अधिक तेज विकास की संभावनाओं की स्पष्ट सूचक है। मुख्यतः रोजगार, षिक्षा आदि के अवसर ही इसके कारण हैं। इसलिये उन्हें ही स्मार्ट सिटी बनाने की आवष्यकता अधिक है। हो सकता कि कुछ शहरो की आबादी अतीत में तो तेजी से बढ़ गई हो, लेकिन अब उनकी तुलना में कोई अन्य शहर अधिक आकर्षक बन गये हो तथा तुलनात्मक रूप से अब विकास के अवसर भी पुराने शहरांे से अधिक इन तेज विकास वाले शहरों मे मिलने लगे हो। इसलिये 2011 की जनसंख्या को मुख्य आधार बना लेना एक प्रकार से अतीत को अधिक महत्व देना हो जायेगा और जब हम जनसंख्या वृद्धि दर अर्थात् शहर के प्रति आम लोगो के आकर्षक को आधार बनायेंगे तो यह वर्तमान व भविष्य को समुचित महत्व देने के समान होगा। जब हमें स्मार्ट सिटी भविष्य के लिये तैयार करना है तो फिर हम अतीत की ‘‘जनसंख्या (एक स्थिर संख्या)‘‘ के बजाय ‘‘जनसंख्या वृद्धि दर (जो भविष्य मे भी गतिमान व अरदार है)‘‘ को शहर-चयन का आधार क्यांे न बनायें ? जिन शहरों मे वर्तमान व भविष्य में, लोगो के तथा स्वयं के विकास के अधिक संभावनाएॅ है, उन्ही में तो देष के विकास के इंजिन बनने की भी अधिक संभावनाएॅ होती है। कहा जा सकता है कि शहर चयन का यह आधार बदल देने से प्राप्त होने वाली सूची मंे कोई आमूल-चूल बदलाव नही होगा। लेकिन कुछ तो बदलाव होगा ही और भले ही न हो, परन्तु समझने की बात यह है कि इस बदलाव से हमारे नजरिये में, सोचने-समझने व योजना को क्रियान्वित करने के तरिको में भी महत्वपूर्ण अंतर आयेगा। हम यह समझना छोड़ेंगें की इस योजना द्वारा कुछ बड़ी आबादी के शहरों को अधिक सुविधाएॅ व संसाधन दिये जा रहें हैं। बल्कि, इससे यह सही संदेश मिलेगा कि इस योजना के द्वारा हम अधिक भावी संभावनाओं वाले शहरों को चुनकर उन्हें देश के विकास को अधिक गति देने वाले केन्द्रों (ग्रोथ इंजिन्स) के रूप में विकसित कर रहे है।

इसके लिये मेरे सुझाव का पूरा आषय यह है कि जनसंख्या वृद्धि दर ही शहर-चयन का सर्वप्रमुख आधार हो सकती हैं तथा साथ ही अन्य ऐसे आधारो को भी देखना चाहिये कि जिनसे किसी शहर की भावी विकास संभावनाओं का अधिक तथ्यात्मक निर्धारण हो सके, जैसे वहाँ औद्योगिक विकास की संभावनाएॅ, उत्पादों के निर्यात की संभावनाएँ, पर्यटन, षिक्षा, व रोजगार आदि की संभावनाएँ, आदि। ये सभी संभावनाएँ भी शहर की कुल जनसंख्या से कम, बल्कि उसमें जनसंख्या वृद्धि दर से अधिक जुड़ी हुई है।  इसलिये 2011 की जनसंख्या को मुख्य आधार बना लेना एक प्रकार से अतीत को अधिक महत्व देना हो जायेगा और जब हम जनसंख्या वृद्धि दर अर्थात् शहर के प्रति आम लोगो के आकर्षक को आधार बनायेंगे तो यह वर्तमान व भविष्य को समुचित महत्व देने के समान होगा। जब हमें स्मार्ट सिटी भविष्य के लिये तैयार करना है तो फिर हम अतीत की ‘‘जनसंख्या (एक स्थिर संख्या)‘‘ के बजाय ‘‘जनसंख्या वृद्धि दर (जो भविष्य मे भी गतिमान व अरदार है)‘‘ को शहर-चयन का आधार क्यांे न बनायें ? जिन शहरों मे वर्तमान व भविष्य में, लोगो के तथा स्वयं के विकास के अधिक संभावनाएॅ है, उन्ही में तो देष के विकास के इंजिन बनने की भी अधिक संभावनाएॅ होती है। कहा जा सकता है कि शहर चयन का यह आधार बदल देने से प्राप्त होने वाली सूची मंे कोई आमूल-चूल बदलाव नही होगा। लेकिन कुछ तो बदलाव होगा ही और भले ही न हो, परन्तु समझने की बात यह है कि इस बदलाव से हमारे नजरिये में, सोचने-समझने व योजना को क्रियान्वित करने के तरिको में भी महत्वपूर्ण अंतर आयेगा। हम यह समझना छोड़ेंगें की इस योजना द्वारा कुछ बड़ी आबादी के शहरों को अधिक सुविधाएॅ व संसाधन दिये जा रहें हैं। बल्कि, इससे यह सही संदेश मिलेगा कि इस योजना के द्वारा हम अधिक भावी संभावनाओं वाले शहरों को चुनकर उन्हें देश के विकास को अधिक गति देने वाले केन्द्रों (ग्रोथ इंजिन्स) के रूप में विकसित कर रहे है।

अगली पोस्ट मे जारी –––

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